दहेज एवं बाल विवाह: एक सामाजिक अभिशाप !


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 148वीं जयंती पर मैंने सम्राट अशोक कन्वेंशन केन्द्र, पटना के नवनिर्मित बापू सभागार का लोकार्पण किया और दहेज एवं बाल विवाह के खिलाफ महाभियान की शुरुआत की। बापू सभागार परिसर में विभिन्न जिलों के स्कूली बच्चों द्वारा निर्मित चित्रों की प्रदर्शनी का अवलोकन किया और बाल विवाह एवं दहेज प्रथा के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिये जागरूकता अभियान की शुरुआत की। इसकी सफलता के लिए सभागार में पांच हजार से ज्यादा महिलाओं को शपथ दिलायी गयी तथा दहेज प्रथा एवं बाल विवाह के खिलाफ लघु फिल्म का मैं साक्षी रहा।
      

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के प्रति हम संकल्पित हैं। चम्पारण सत्याग्रह का शताब्दी समारोह जोर-शोर से मनाया जा रहा है। विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से गांधी जी का संदेश जन-जन तक पहुंचाया जा रहा है। हमने 01 अप्रैल 2016 से क्रमबद्ध ढंग से शराबबंदी लागू किया और उसके चार दिन बाद 05 अप्रैल 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू किया। ये बापू के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि है। लोगों का विशाल जन समर्थन मिला। महिलाओं की आवाज पर हमने ये निर्णय लिया। इसे लेकर हमारा मजाक उड़ाया जाता रहा। चंद लोग शराब को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ जोड़कर देखते हैं, जबकि उन्हें इस बात की कल्पना नहीं होती है कि वे अपनी गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा शराब में गंवा देते थे। मैंने सुना कि कई लोग इसे स्वतंत्रता और निजी अधिकार के साथ जोड़ते हैं, जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कई दफा इसे लेकर स्पष्ट कहा है कि शराब का सेवन एवं व्यवसाय करना मौलिक अधिकार नहीं है। शराब के सेवन से परिवार के अंदर वातावरण खराब होता है और बच्चों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मुझे पता था कि शराब के कारण परिवार का वातावरण भी कुंभलाया रहता था और शाम के समय मारपीट की घटना घटती रहती थी। शहर और कसबों में ऐसा माहौल हर जगह देखने को मिलता रहता था लेकिन शराबबंदी के बाद से माहौल बदला है, प्रेम और सौहार्द्र का वातावरण बना है, घरेलू हिंसा में कमी आई है, बारात जल्द ही दरवाजे लग रहे हैं। शराब पीकर जो लोग अनाप-शनाप बकते रहते थे, उसमें अब परिवर्तन देखने को मिल रहा है। एक समारोह में मुझे एक महिला ने अपनी आप बीती सुनाते हुये कहा कि उसका पति शराब पीकर झगड़ा करता था। महिला ने कहा कि उसके पति उसे अच्छे नहीं लगते थे लेकिन जबसे शराब पीना छोड़ दिया है, घर पर सब्जी लेकर आते हैं, मुस्कुराते हैं और अब देखने में भी अच्छे लगते हैं। वैसे तो कुछ लोगों में कानून का उल्लंघन करने की प्रवृति होती है, कुछ धंधेबाजी में लगे हुये हैं, कितना भी कानून बनाइये उनकी प्रवृति कानून उल्लंघन की ही रहती है, इन पर सख्त नजर रखी जा रही है। शराबबंदी के खिलाफ अभियान चलता रहेगा और लोगों को जागरूक किया जाता रहेगा। ऐसा न हो कि शराब की जगह दूसरी नशीली वस्तु का सेवन लोग करने लगें, इसके लिए भी लोगों में जागरुकता लानी है। कहा जाता है कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। शराबबंदी के खिलाफ 21 जनवरी, 2017 को जो मानव श्रृंखला बनी थी, उसमें चार करोड़ से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया था जो कि लगभग बिहार की आबादी का एक तिहाई हिस्सा था, जो जन भावना का प्रकटीकरण था।

मेरा मानना है कि दहेज एवं बाल विवाह एक बड़ी सामाजिक कुरीति है, जिसे जड़ से मिटाना जरूरी है। वर्ष 2015 के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो महिला अपराध में बिहार का 26वां स्थान है, पर दहेज मृत्यु के दर्ज मामलों की संख्या में हमारे प्रदेश का स्थान देश में दूसरा है। राज्य के प्रत्येक 10 में से 4 लड़कियों का विवाह बालपन में ही हो जाता है, जिसके कारण 15 से 19 आयु वर्ग की 12.2 प्रतिशत किशोरियां मां बन जाती हैं या गर्भावस्था में रहती हैं। बच्चे को जन्म देने के दौरान, 15 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं की मृत्यु की संभावना 20 वर्ष की उम्र वाली महिलाओं की अपेक्षा पांच गुना अधिक होती है। हमलोगों ने नारी सशक्तीकरण के लिये काफी उपाय किये हैं, जिसमें पंचायती राज संस्थाओं एवं नगर निकायों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देने पर काम किया गया। हमने 2006 में पंचायती राज संस्थाओं में और 2007 में नगर निकायों में आधी आबादी के बराबर उन्हें पचास प्रतिशत आरक्षण दिया। उसके बाद हमने प्राथमिक शिक्षकों के नियोजन में भी पचास प्रतिशत आरक्षण महिलाआंे को दिया। लड़कियों में अशिक्षा के सबसे बड़े कारणों में से एक गरीबी है। अभिभावक पोशाक की कमी के कारण लड़कियों को स्कूल नहीं भेजते थे, इसके लिये हमने मिडिल स्कूल में पढ़ रही बालिकाओं के लिये बालिका पोशाक योजना शुरू की, इससे मध्य विद्यालयों में लड़कियों की संख्या बढ़ी। इसके बाद हमने 9वीं कक्षा की लड़कियों के लिये बालिका साइकिल योजना की शुरूआत की। पहले पटना में भी लड़कियों को साइकिल चलाते हुये नहीं देखा जाता था, गांव में पहले जब लड़कियां साइकिल चलातीं दिख जाती थीं तो ये कहा जाता था कि लड़की हाथ से निकल गयी। आज घर-घर से लड़कियां साइकिल चलाकर स्कूल जाती हैं। अब लोगों की सोच बदल गयी, जिससे उनमें प्रसन्नता आयी है। जिस समय यह योजना शुरू की गयी थी, उस समय 9वीं कक्षा में लड़कियों की संख्या 1 लाख 70 हजार से भी कम थी, जो आज 9 लाख से ज्यादा पहुंच गयी है। महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी हमने काम किया है। गर्भवती, शिशुवती माताओं को आशा एवं ममता जैसे प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं से स्वास्थ्य संरक्षण प्राप्त हुआ है। वर्ष 2006-07 में सरकारी अस्पतालों में संस्थागत प्रसव हेतु मात्र 4 प्रतिशत महिलाएं आया करती थीं, जो वर्तमान में बढ़कर 63.8 प्रतिशत हो गया है। माता मृत्यु दर (एम0एम0आर0) जो वर्ष 2005 में 312 प्रति लाख था, वह वर्ष 2013 में घटकर 208 हो गया है। राज्य में महिलाओं की औसत आयु जो वर्ष 2006 में 61.6 वर्ष थी, 2014 में हुई गणना में बढ़कर 68.4 वर्ष हो गयी है। वर्ष 2005 में राज्य में शिशु मृत्यु दर (आई0एम0आर0) 61 प्रति हजार था, जो वर्ष (एस0आर0एस0) 2017 के अनुसार घटकर 38 प्रति हजार हो गया है। बिहार में नियमित टीकाकरण वर्ष 2005 में 18.6 प्रतिशत से बढ़कर 2016-17 में 84 प्रतिशत हो गया है। हमारा सारा प्रयास नारी सशक्तीकरण के लिये है। इसके लिये 7 निश्चय में से एक निश्चय, सभी सरकारी सेवाओं में महिलाओं के लिये 35 प्रतिशत आरक्षण है। इस निश्चय पर हमने अमल कर दिया है और यह फरवरी, 2016 से ही लागू भी कर दिया गया है।      

 
शराबबंदी के बाद अब बाल विवाह एवं दहेज प्रथा जैसी कुरीति पर बड़े चोट करने की जरूरत है। इसके बावजूद भी बाल विवाह जो अभी 39 प्रतिशत है उस पर काफी कुछ किया जा रहा है, वहीं दहेज प्रथा के खिलाफ भी महिलाओं में जागरूकता अभियान तेज किया जा रहा है। स्वयं सहायता समूह जिसकी संख्या अभी 6 लाख 80 हजार है, उसे 10 लाख करने का लक्ष्य है। ये स्वयं सहायता समूह दहेज प्रथा एवं बाल विवाह के खिलाफ व्यापक जन चेतना जगाने का दायित्व निभायेंगे। मुझे ऐसा लगता है कि लोग गरीबी, शिक्षा की कमी, रीति-रिवाज के कारण बाल विवाह करते हैं, इसका दुष्परिणाम काफी गंभीर होता है। हमारे यहां कानून है कि 21 साल से कम उम्र के लड़के और 18 साल के कम उम्र की लड़की की शादी नहीं हो सकती परंतु बाल विवाह होता है। बाल विवाह के पश्चात लड़कियों को काफी कष्ट झेलना पड़ता है। अगर लड़की कम उम्र में गर्भधारण करती है तो प्रसव के दौरान बच्चा एवं मां की मौत की आशंकायें बढ़ जाती हैं और अगर बच्चे होते हैं तो उन्हें अनेक प्रकार की बीमारी सताती है। आज कल बौनापन के शिकार लोगों की संख्या बढ़ रही है। बौनेपन का एक प्रमुख कारण बाल विवाह भी है। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के प्रतिवेदन के अनुसार बिहार राज्य में वर्ष 2006 से 2016 के बीच 5 वर्ष से कम आयु के लगभग 40 फीसदी बच्चे बौनेपन का शिकार हो रहे हैं, वहीं एक आंकड़ा ये भी दर्शाता है कि कम उम्र की विवाहित लड़कियों को गर्भधारण के दौरान भ्रूण-जांच से गुजरना पड़ता है। इसी क्रम में अन्य कन्या भ्रूण की जानकारी मिलती है तो गर्भपात कराने के मामले सामने आते हैंै। ऐसी मनोवृति बालिकाओं के शिशु मृत्यु दर को भी बढ़ाती है, यही कारण है कि हमारे राज्य में बालिकाओं का शिशु मृत्यु दर 46 तथा बालकों का 31 है। मुझे लगता है कि बाल विवाह एवं दहेज प्रथा पर नियंत्रण के बाद महिला संबंधी अपराध में कमी आयेगी। 2016 में दहेज मृत्यु के 987 मामले और दहेज प्रताड़ना के 4852 मामले सामने आये हैं। अगर बाल विवाह एवं दहेज प्रथा से छुटकारा मिल जाये तो कितना अच्छा होगा। दहेज के खिलाफ पहले से 1961 का कानून है तथा 2006 का बाल विवाह का कानून है। इसके बावजूद ये स्थिति है। हमने संकल्प लिया है कि दहेज प्रथा एवं बाल विवाह के खिलाफ सशक्त अभियान चलायेंगे और इसकी बुनियाद को आगे ले जायेंगे। बिहार को बाल विवाह एवं दहेज प्रथा से मुक्त बनायेंगे।

पूरी दुनिया कहती है कि हमारा इतिहास गौरवशाली रहा है। यह भूमि महान सम्राट अशोक की है, मौर्य, गुप्त वंश का इतिहास भी यहीं का रहा है। इसी पाटलिपुत्र की धरती से आज जो भारत भूखण्ड है, उससे बड़े भूखण्ड पर यहां से शासन का संचालन होता था। शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया का सबसे पहला विश्वविद्यालय यहीं था। नालंदा, बिक्रमशीला विश्वविद्यालय रहे हैं, अब तो तेलहाड़ा में भी विश्वविद्यालय का पता चला है। इसी धरती से चाणक्य ने अर्थशास्त्र की रचना की है, आर्यभट्ट ने दुनिया को शून्य दिया। ये ज्ञान की भूमि है, राज संचालन की भूमि है। यह गुरू गोविंद सिंह जी महाराज की जन्मस्थली है। बुद्ध की ज्ञान की भूमि है। यह भगवान महावीर की जन्मभूमि, ज्ञान की भूमि और निर्वाण की भूमि है। चम्पारण में गांधी जी जो कि राजकुमार शुक्ल के द्वारा निलहा किसान समाधान के लिये बुलाये गये थे, ने यहां आकर चम्पारण सत्याग्रह की शुरूआत की। यह आन्दोलन सफल रहा, सरकार को झुकना पड़ा, बिहार अग्रेरियन बिल लाया गया, टैक्स को रोकना पड़ा। चम्पारण सत्याग्रह ने देश की आजादी की लड़ाई को एक नई दिशा दी। उसके 30 साल के भीतर ही देश आजाद हुआ। हमारा इतना गौरवशाली इतिहास होने के बावजूद हम सामाजिक कुरीतियों के आज भी शिकार हैं। हमने विकास किया, बिजली के क्षेत्र में, सड़क के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में, स्वास्थ्य के क्षेत्र में, ये सच है लेकिन इसका लाभ तभी होगा, जब हम इन कुरीतियों पर विजय प्राप्त कर लेंगे। हमारे लोक संवाद के कार्यक्रम में एक महिला ने आकर कहा कि शराबबंदी की तरह ही दहेज प्रथा के खिलाफ भी अभियान चलाइये, उसी समय से इसके खिलाफ अभियान चलाने का मेरे मन में संकल्प आया। बाल विवाह, दहेज प्रथा के खिलाफ संकल्प में आप भी शामिल होइये। दहेज वाली शादी में न जाने का सबसे आग्रह करता हूं। इस तरह के प्रयास से सकारात्मक वातावरण बनेगा। कानून का पालन मुस्तैदी से तो हो ही, साथ में जन भावना को जागृत करने का सशक्त प्रयास जारी रखना है। शराबबंदी से मिला जन समर्थन हमारे प्रयास को बुलंद कर रहा है। 

जीविका परियोजना के तहत राज्य में 10 लाख स्वयं सहायता के गठन का लक्ष्य है, जिसमें लगभग डेढ़ करोड़ महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित होगी। अब तक महिलाओं के 6 लाख 70 हजार स्वयं सहायता समूह गठित कर लिए गए हैं, जिसमें 78 लाख 20 हजार परिवार आच्छादित हुए हैं। बाल विवाह, दहेज प्रथा के प्रति लोगों में जागरुकता तो बनी हीं रहे साथ ही शराबबंदी एवं नशामुक्ति को एक क्षण भी न भूलें। हमें पूरा विश्वास है कि जनता का पूरा सहयोग मिलेगा। लोगों के भरोसे से समाज बदलेगा। पिछली बार शराबबंदी के पहले भी अभियान चलाया गया था और शराबबंदी के बाद भी अभियान चलाया गया। जो मानव श्रृंखला 21 जनवरी 2017 को शराबबंदी एवं नशामुक्ति के लिये बनी थी, वैसी ही मानव श्रृंखला फिर 21 जनवरी 2018 को दहेज प्रथा एवं बाल विवाह के खिलाफ बनायी जाये जो जन भावना का प्रकटीकरण होगा। 

मैंने तो इस अभियान को दिल से अपनाने का आह्वान किया। अगर दहेज वाली शादी में लोग नहीं जायेंगे तो ऐसे लोग समाज से अपने आपको बहिष्कृत महसूस करेंगे। बिहार राजनीतिक रूप से काफी जागरूक रहा है परंतु सामाजिक रूप से उतना नहीं। सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिये जागरूकता पैदा किया जायेगा। हमारा विकास सर्वांगीण होना चाहिये। भौतिक विकास के साथ-साथ अंदर से भी परिवर्तन हो। सम्मान का भाव सबके प्रति रहे। प्रेम, सौहार्द्र, मेल-जोल का भाव सिर्फ मनुष्यों के प्रति नहीं, सभी जीव-जंतुओं के प्रति भी रहे। धार्मिक स्थल पर भी सामंजस्य रहे क्योंकि हर एक आत्मा में परमात्मा का वास है। मनुष्य प्रकृति के साथ छेड़छाड़ न करे, यह धरती सबके लिये है, पर्यावरण के प्रति सर्तक रहें। समाज की कुरीति से छुटकारा पाकर मनुष्य देवत्व की तरफ प्रस्थान कर सकता है। बाल विवाह एवं दहेज प्रथा जैसी कुरीति को दूर करने के लिये अपने मन को समझाइये और अपने पड़ोस को भी। सात निश्चय चलेगा, यह संकल्प है। सभी से प्रार्थना है कि आप सभी संकल्प लें, एकजुट हों और नई ऊंचाई पर बिहार को ले जायें। सभी समूह, संगठन, जीविका दीदी सबलोग मिलकर इसको गति दें। यह अभियान राजनीतिक नहीं है बल्कि इस सामाजिक जागरुकता अभियान में 21 जनवरी 2018 को सभी पार्टी के लोग एवं आम से खास इस मानव श्रृंखला में शामिल हों। 

 एक कार्यक्रम के दौरान वैशाली की रिंकी कुमारी जिन्होंने बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठायी, गया की काजल कुमारी ने भी बाल विवाह का विरोध किया तथा पटना की धनमंती कुमारी जिन्होंने दहेज प्रथा का विरोध किया था ने अपने अनुभव बताए, इन्हीं अवधारणाओं को तोड़ने के लिए हमारा संकल्प क्रमशः जारी है। यह किसी से छिपा नहीं है कि शराबबंदी से समाज में व्यापक एवं सकारात्मक परिवर्तन आया है तथा बाल विवाह एवं दहेज प्रथा के उन्मूलन से भी समाज बेहतरी की ओर बढ़ेगा। समाज में जमाने से चली आ रही इन कुरीतियों से लड़ने के लिए हम सबको साथ मिलकर एक सुंदर, मिल्लत से भरा समाज बनाना होगा, यही बापू के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 


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